डॉ अपर्णा रामकृष्णन, कंसलटेंट, साइकेट्री, कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई
मौसम में बदलाव के साथ भौतिक वातावरण में बदलाव आना एक आम बात है। लेकिन इससे व्यक्ति की मानसिक और भावनिक स्थिति पर भी काफी प्रभाव पड़ सकता है। जब भी नया मौसम शुरू होता है, या किसी मौसम के आखरी दिन चल रहे होते हैं तब कई लोग उदास रहने लगते हैं।
सर्दियों में दिन छोटे होने का असर कई लोगों के मूड पर होता है, मन उदास रहने लगता है, यही लोग बसंत और गर्मियों में जब दिन का उजाला बढ़ता है तब बेहतर महसूस करते हैं। किसी व्यक्ति के मूड में होने वाले बदलाव अगर गंभीर हैं, उनसे उन्हें काफी ज़्यादा तनाव हो रहा है, रोज़ाना कामों में दिक्कत आ रही है, समाज में मिलने-जुलने या कामकाज में बाधाएं आ रही हैं तो वह व्यक्ति सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर से पीड़ित हो सकता है।
सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर(एसएडी)अफेक्टिव डिसऑर्डर (एसएडी) में दुःख, अप्रसन्नता, निराशा के कई लक्षण दिखाई देते हैं जो मौसम में होने वाले बदलावों से जुड़े होते हैं। निराशा के प्रमुख विकारों के लक्षणों की तरह ही यह लक्षण होते हैं, जैसे कि, दिन भर, लगभग हर दिन उदास महसूस करना, पहले जो बातें अच्छी लगती थीं उनमें रूचि खो देना, भूख या वज़न में बदलाव, नींद में परेशानी, सुस्त या उत्तेजित महसूस करना, थकान, असहाय या निराश, बेकार महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, बार-बार मृत्यु या आत्महत्या के ख़याल आना। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि सर्दियों में होने वाले विशिष्ट एसएडी में समाज से दूर जाना, बहुत ज़्यादा खाने और सोने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं, जबकि गर्मियों में होने वाले विशिष्ट एसएडी में अनिद्रा, वजन घटने, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, गुस्सा और चिंता होना यह लक्षण हो सकते हैं। यह लक्षण लगातार कम से कम 2 सालों तक विशिष्ट मौसम के दौरान दिखाई देते हैं और निराशा के कारण होने वाले किसी भी अन्य विकार की तुलना में ज़्यादा बार होते हैं।
एसएडी सबसे ज़्यादा युवा वयस्कों में पाया गया है, खासकर जिनके परिवार में पहले किसी को डिप्रेशन हो चूका है ऐसी महिलाएं एसएडी का सबसे ज़्यादा शिकार होती हैं। निष्क्रियता इसका और एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है। हालांकि इसके ज़्यादातर अध्ययन पश्चिमी देशों में किए गए हैं, लेकिन उत्तरी भारत में किए गए अध्ययनों में भी गर्मियों में निराशा, अप्रसन्नता, सीज़नल बायपोलर डिसऑर्डर, और बार-बार होने वाला सीज़नल मेनिया (गर्मी के महीनों मार्च-मई के दौरान) का काफी ज़्यादा प्रसार देखा गया है।
फ़िलहाल एसएडी को बायोलॉजिकल हेट्रोजिनियस कंडीशन यानी जैविक रूप से विषम स्थिति के रूप में माना जाता है और इसके सटीक कारण अभी भी स्पष्ट नहीं हैं। कई हाइपोथेसिस को प्रस्तुत किया गया है, जिनमें सर्केडियन रिदम डिसरेगुलेशन शामिल है, जिससे मिजाज बिगड़ जाता है या मूड स्विंग होते हैं। सेरोटोनिन के स्तर में कमी जैसे न्यूरोकेमिकल बदलाव (प्रकाश के संपर्क में कमी के कारण), मेलाटोनिन, कोर्टिसोल, ग्लूटामेट, डोपामाइन और नॉरपेनेफ्रिन के स्तर में बदलाव भी एसएडी के संभावित कारणों में शामिल हैं।
एसएडी पर इलाज के लिए व्यक्ति और उसके परिवार को साइकोएज्युकेशन यानी मनो-शिक्षा दी जाती है। व्यक्ति को दूसरा कोई भी शारीरिक और मानसिक विकार या सह-विकार नहीं है यह सुनिश्चित किया जाता है और आंतरिक मेडिकल स्थिति का इलाज किया जाता है। लाइट थेरेपी, हार्मोन थेरेपी, एंटीडिप्रेसेंट का उपयोग, आहार में बदलाव और विटामिन डी सप्लीमेंट, शारीरिक गतिविधियों, सक्रियता को बढ़ाना, मनोचिकित्सा, ध्यान, सुबह जल्दी उठकर प्राप्त की गयी उत्तेजना आदि उपायों को भी प्रभावी पाया गया है।
