डॉ अणु अग्रवाल
कंसलटेंट, न्यूरोलॉजी, स्पेशलिस्ट कॉग्निटिव एंड बिहेवियरल न्यूरोलॉजी
कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल मुंबई  

हर साल 28 फरवरी का दिन दुर्लभ रोग दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुर्लभ बिमारियों का सामना करते हुए लोगों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उनके बारे में जागरूकता बढ़ाना इस पहल का उद्देश्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार, हर 1,000 की आबादी में सिर्फ 1 या उससे भी कम संख्या में लोगों को जो बीमारी या विकार होता है उसे दुर्लभ रोग या विकार कहा जा सकता है। विल्सन्स रोग एक ऐसी ही दुर्लभ बीमारी है जिससे दुनिया भर के हर 30,000 लोगों में से 1 व्यक्ति ग्रासित है।

विल्सन रोग – एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार

विल्सन्स रोग में तांबे को ग्रहण करने की शरीर की क्षमता प्रभावित होती है जिससे लिवर, ब्रेन और आंखों जैसे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में तांबा जमा होने लगता है। विल्सन्स रोग व्यक्ति की पूरी ज़िन्दगी भर तक कायम रहने वाली स्थिति है लेकिन इसके जल्द से जल्द निदान और इलाज से मरीज़ की जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।

यह एक अनुवांशिक विकार है। अगर माता-पिता दोनों में दोषपूर्ण जीन हैं तो उनके बच्चे को यह विकार हो सकता है। हमारे शरीर में एटीपी7बी जीन लिवर से कॉपर को बाहर निकालने और पित्त नलिकाओं में उत्सर्जन का काम करता है, इस जीन में उत्परिवर्तन के कारण विल्सन्स बीमारी होती है। विल्सन्स विकार में, यह प्रक्रिया खराब हो जाती है, जिससे लिवर, ब्रेन और आंखों जैसे महत्वपूर्ण अंगों में तांबा जमा हो जाता है।

विल्सन्स रोग का निदान 

विल्सन्स रोग के प्रबंधन और जटिलताओं को पैदा होने से रोकने के लिए इस बीमारी का जल्द से जल्द पता लगना और उस पर इलाज करना ज़रूरी है। लेकिन विल्सन्स रोग के लक्षण अविशिष्ट हो सकते हैं और कई बार उन्हें लिवर या अन्य न्यूरोलॉजिकल विकारों के लक्षण भी माना जा सकता है, जिसकी वजह से विल्सन्स रोग का निदान करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। आमतौर पर नैदानिक लक्षणों, न्यूरोलॉजिकल परीक्षा, लिवर से संबंधित टेस्ट्स और ब्रेन स्कैन को मिलाकर यह निदान किया जाता है। रक्त परीक्षण से रक्त में तांबे और तांबे को बांधने वाला प्रोटीन सेरुलोप्लास्मिन की मात्रा का पता लग सकता है। कुछ रोगियों में लिवर में कॉपर की मात्रा जांचने के लिए लिवर बायोप्सी भी की जा सकती है। आनुवंशिक परीक्षण निदान की पुष्टि कर सकता है और रोग के वाहक की पहचान हो सकती है।

विल्सन्स रोग के लक्षण 

विल्सन्स रोग के लक्षण काफी ज़्यादा अलग-अलग हो सकते हैं और इस बीमारी का शीघ्र पता लगना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। बीमारी के लक्षण बीमारी की गंभीरता और माता-पिता की आयु पर निर्भर होते हैं। सामान्य लक्षणों में थकान, पीलिया, पेट में दर्द और कंपकंपी शामिल हैं। कुछ मामलों में, अवसाद, चिंता और व्यक्तित्व में बदलाव जैसे मानसिक लक्षण भी दिखायी दे सकते हैं। इस बीमारी का अगर इलाज न किया जाए, लिवर फेलियर, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।

विल्सन रोग का इलाज और प्रबंधन

इस बीमारी में इलाज का लक्ष्य शरीर में तांबे की मात्रा को कम करना और तांबा जमा होने से रोकना है। मरीज़ की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा कर सकें ऐसी व्यक्तिगत उपचार योजना विकसित करने के लिए डॉक्टर के साथ मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है। 

उपचार में आमतौर पर ऐसी दवाइयां दी जाती हैं जो तांबे को कीलेट करती हैं और शरीर से इसके उत्सर्जन को बढ़ाती हैं, जैसे की, डी-पेनिसिलमाइन, ट्राइएंटाइन या ज़िंक एसीटेट। गंभीर मामलों में, क्षतिग्रस्त लिवर के लिए लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ सकती है।

मेडिकल इलाज के अलावा, कई कोपिंग स्ट्रैटेजी विल्सन्स बीमारी से पीड़ित लोगों को उनके लक्षणों का प्रबंधन करने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती हैं। इन मरीज़ों को स्वस्थ आहार लेना चाहिए और लिवर, शेलफिश जैसे पदार्थ जिनमें तांबा ज़्यादा मात्रा में होता है ऐसे खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। मल्टीविटामिन और मिनरल सप्लीमेंट जिनमें तांबा होता है ऐसे सप्लीमेंट्स से भी उन्हें बचना चाहिए।

एक अनुमान के अनुसार, एक न्यूरोलॉजिस्ट के पास उनके कुल प्रैक्टिस लाइफ टाइम में विल्सन्स बीमारी के 2 मरीज़ आते हैं। इस वजह से उनका इस बीमारी के निदान और इलाज से परिचित होना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। दूसरी दुर्लभ बीमारियों (करीबन 7000 बीमारियां हैं) में भी यही होता है, मुख्य मेडिकल पाठ्यक्रम में इन बीमारियों का विस्तार से अध्ययन शामिल नहीं है।

विल्सन्स बीमारी इतनी दुर्लभ होने की वजह से, दुनिया भर में इसके निदान में अक्सर औसतन 2 साल और एक दशक तक की देरी होती है। अनुमान लगाया गया है कि 75% रोगी गलत निदान और इलाज के दौरान अपनी जान गवा देते हैं। इसके अलावा, जैसा कि सभी दुर्लभ बीमारियों में होता है, विशेषज्ञों सहित कई डॉक्टरों को उनके निदान और इलाज की जानकारी नहीं हैं। इसलिए मल्टी-डिसिप्लिनरी दृष्टिकोण को अपनाने वाले अग्रणी टर्शरी केयर अस्पतालों में जाएं जहां इस तरह की दुर्लभ बीमारी का इलाज करने वाले पूर्णकालिक विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध हो। 

विल्सन्स बीमारी के साथ जीना 

किसी भी दुर्लभ बीमारी के साथ जीना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन विल्सन्स बीमारी के अधिकांश मरीज़ उचित इलाज और प्रबंधन के साथ स्वस्थ और पूर्ण जीवन जी सकते हैं। लिवर के कार्य और तांबे के स्तर की नियमित जांच के लिए समय-समय पर डॉक्टर से मिलें और सुनिश्चित करें कि इस बीमारी का प्रबंधन सही तरीके से किया जा रहा है। नियमित व्यायाम, ध्यान और योग जैसी तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करना और मित्रों और परिवार के साथ जुड़े रहना भी ज़रूरी है।

आज के दौर में, विल्सन्स बीमारी के निदान और इलाज में काफी विकास हुआ है। इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली ज़्यादातर दवाइयां भारत में उपलब्ध हैं। यहां तक कि गंभीर विकलांग मरीज़ों में भी सुधार हो सकते हैं, स्कूली शिक्षा या काम फिर से शुरू कर सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं। बीमारी का शीघ्र निदान और मल्टी-सिस्टेमेटिक पहलुओं का व्यक्तिगत प्रबंधन इस गंभीर लेकिन उपचार योग्य बीमारी के इलाज के लिए महत्वपूर्ण है। सही इलाज अगर किए जाने तो विल्सन्स बीमारी से रिकवर होना संभव है। यह देखकर खुशी होती है कि आज कई युवा वयस्क अपने सामान्य काम कर रहे हैं, सामाजिक और पारिवारिक जीवन जी रहे हैं!

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